Gulamgiri ka Lekhak Kaun Tha | ‘गुलामगिरी’ पुस्तक के लेखक कौन थे?
Gulamgiri ka Lekhak Kaun Tha:- पुस्तक गुलामगिरी के लेखक "महात्मा ज्योतिबा फुले" थे. जिस काल मे ब्रह्मण, शूद्रों को सिर्फ अपने तलवे चाटने वाला समझते थे, और उनपर घोर अत्याचार करते थे उस काल मे 'महात्मा ज्योतिबा फुले' ने यह पुस्तक गुलामगिरी सन्न 1873 मे दलित वर्ग के लिए लिखी.
Contents
Introdution:-
Gulamgiri ka Lekhak Kaun Tha:- भारतीय इतिहास मे ऐसे कई महान लेखक हुए है जिन्होंने अपनी कलम और सोच से दुनिया को जीने का सही तरीका सिखाया है. हालांकि आज के समय मे चल रहे इस नए तौर तरीकों जैसे की यूट्यूब, फेस्बूक और न जाने कितने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जहां पर सभी जानकारी आपको शॉर्ट वीडियोज़ के माध्यम से देखने की आदि बना चुकी है, वहाँ आप 2 या 3 घंटे एक बुक को पढ़कर अपना समय खराब नहीं करना चाहते है. मगर यदि आप अपने पूर्वजों के जीवन को देखना चाहते है उन्हे महसूस करना चाहते है तो पुस्तक ‘गुलामगिरी’ आपको ऐसा करने मे आपकी पूर्ण रूप से सहायता करेगी.
देश की आजादी के बाद भले ही हम लोकतंत्र मे जी रहे है, मगर आज भी हम मानसिक तौर पर आजाद नहीं है, आज भी देश के कई ऐसे हिस्से है जहां पर अभी भी ऊंची और नीची जाती मे फर्क किया जाता है. ऐसे मे उन्हे जरूरत है इस किताब ‘गुलामगिरी ‘ को पढ़ने की. आइए आपको बताते है की, Gulamgiri ka Lekhak Kaun Tha.
Gulamgiri ka Lekhak Kaun Tha
अब यदि दोस्तों बात करे पुस्तक ‘गुलामगिरी’ के लेखक के बारे मे तो हम आपको बता दे की, पुस्तक गुलामगिरी के लेखक “महात्मा ज्योतिबा फुले” थे. जिस काल मे ब्रह्मण, शूद्रों को सिर्फ अपने तलवे चाटने वाला समझते थे, और उनपर घोर अत्याचार करते थे उस काल मे ‘महात्मा ज्योतिबा फुले‘ ने यह पुस्तक गुलामगिरी सन्न 1873 मे दलित वर्ग के लिए लिखी. गुलामगिरी भारतीय समाज की सामाजिक सरंचना मे ब्राह्मणवादी वर्चस्व और पाखंड के बारे मे बात करती है, इसमे जाती प्रथा की आलोचना की गई है. अपने जीवन मे एक बार आपको यह किताब जरूर से पढ़ लेनी चाहिए ताकि आप मानसिक रूप से भी आजाद हो सके.
ज्योतिबा फुले कौन थे?
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था और इन्हे महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले भी कहा जाता है. एक वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का निधन हो गया जिसके बाद इनका लालन-पालन एक बायी ने किया. उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा, इसलिए माली के काम में लगे ये लोग ‘फुले’ के नाम से जाने जाते थे. ज्योतिबा फुले ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की. इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं, दलित व स्त्रीशिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्नी ने मिलकर काम किया वह एक कर्मठ और समाजसेवी की भावना रखने वाले व्यक्ति थे.
ज्योतिबा फुले की प्रमुख कृतियाँ
ज्योतिबा फुले ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें भी लिखीं- गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी. ज्योतिबा फुले उन महान व्यक्तियों मे से एक है जिन्होंने न केवल दलित वर्ग के लिए लड़ाई लड़ी बल्कि बाल विवाह और विधवा विवाह के लिए भी कदम उठाए.
निष्कर्ष:-
आज हमने आपको इस पोस्ट मे बताया है की “Gulamgiri ka Lekhak Kaun Tha” साथ ही आपको ज्योतिबा फुले के बारे मे थोड़ी बहुत जानकारी भी प्रदान की है, यदि आप ज्योतिबा फुले के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी जानना चाहते है तो हमने ज्यादा से ज्यादा कमेन्ट करे. आशा करते है आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी कुछ नया जानने और सीखने को मिला होगा तो आप हमे कमेन्ट के माध्यम से जरूर बताए और आगे भी इसी तरह की जानकारी हासिल करने के लिए आते रहिएगा, धन्यवाद.
FAQ:-
गुलामगिरि पुस्तक के लेखक कौन है?
पुस्तक गुलामगिरी के लेखक “महात्मा ज्योतिबा फुले” थे.
ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी कब लिखी?
जिस काल मे ब्रह्मण, शूद्रों को सिर्फ अपने तलवे चाटने वाला समझते थे, और उनपर घोर अत्याचार करते थे उस काल मे ‘महात्मा ज्योतिबा फुले‘ ने यह पुस्तक गुलामगिरी सन्न 1873 मे दलित वर्ग के लिए लिखी
गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत
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